Sunday, June 20, 2010

नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं,हम छलनी में पानी भरने निकले हैं।आँसू पोंछ न पाए अपनी आँखों केऔर जगत की पीड़ा हरने निकले हैं।पानी बरस रहा है जंगल गीला है,हम ऐसे मौसम में मरने निकले हैं।होंठो पर तो कर पाए साकार नहीं,चित्रों पर मुस्कानें धरने निकले हैं।पाँव पड़े न जिन पर अब तक सावन केऐसी चट्टानों से झरने निकले हैं।

Sunday, March 7, 2010

मरने के बहाने कई हैएक जीने का बहाना भी तो होउल्फत के किस्से खुब सुनेअब मुकम्मल अपना फसाना भी तो हो ।हाथों में रखे हाथबस उंगलियों से हो रही थी बातबुढ़ा नाखुनवाला अंगुठाकुछ शर्मा रहा थासोचा तो बहुत थाकुछ कह नहीं पा रहा था ।एक अरसे बाद,आज फिर उसे है देखाकुछ बदली सी है वोयाबदली है किस्मत की रेखायाधोखा है इन करों कानाआशना है जो अब भीये काम तो था फ़कत बुढी़ आखों का कभी उन ख्वाबों कोअब हां कह दियाजिनसे दिल बडा डरता थाउन राहों पेअब चल पडाएक रहनुमा जो संग मिल गया

Saturday, March 6, 2010

अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....सबको प्यार देने की आदत है हमें,अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,कितना भी गहरा जख्म दे कोई,उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं"

Thursday, March 4, 2010

अगर कहूं तुम्हें कोमल कलिका, तो मन घबरा जाता है फूल का तो कुछ ही दिन में अंत समय आ जाता है अगर कहूं तुम्हें श्वेत सरिता तो बेचैन मन हो जाता है सरिता का जीवन तो अनथक चलता जाता है अगर कहूं तुम्हें नभ की तारिका तो भयभीत मन हो जाता है तारिका को तो इंसान रात में ही देख पाता है अगर कहूं तुम हो सांसें मेरी तो मन थोड़ा बहल जाता है क्यूंकि यह तो तय है श्वास तो प्राणों के साथ ही जाता है

हम वो गुलाब है

हम वो गुलाब हैहम वो गुलाब है जो टूट कर भी मुस्कान छोड़ जाते हैं,दुसरों के रिश्ते बनाते फिरते हैं और खुद तन्हा रह जाते हैं ।दुनिया के प्रेम प्रसंगो में हम गुलाबों को टूटना हीं पड़ता है,और हमे देने वाले हर प्रेमी को झुकना हीं पड़ता है,कभी हमे फरमाइश कभी नुमाइश बना दिया,जी चाहा ज़ुल्फों में लगाया,जी चाहा सेज़ पे सज़ा दिया,मेरे तन को छेड़ कर , दीवाने कैसे मचल जाते हैं,दुसरों के रिश्ते बनाते फिरते हैं और खुद तन्हा रह जाते हैं ।बात अभी इतनी होती तो क्या बात थी,पर अभी और भी काली होने वाली रात थी,मेरे अरमानों को कुचल कर इत्र बना दिया,और दिखावटी शिशियों में भर कर सजा दिया,हम मर कर भी साँसों में महक छोड़ जाते है,दुसरों के रिश्ते बनाते फिरते हैं और खुद तन्हा रह जाते
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,एक झूठ है आधा सच्चा सा .जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .जीवन का एक ऐसा साथी है ,जो दूर हो के पास नहीं .कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .हवा का एक सुहाना झोंका है ,कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,कभी अपना तो कभी बेगानों सा .जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,तुम कह देना कोई ख़ास नहीं